क्षेत्रीय भाषा केंद्र के बारे में


भारतीय भाषा संस्थान (सीआईआईएल) की स्थापना भारत सरकार द्वारा 17 जुलाई 1969 को भारतीय भाषाओं के उन्नयन हेतु की गई थी। भारतीय भाषा संस्थान ने विभिन्न भाषिक धाराओं की शोधपरक एवं साहित्यिक उपलब्धियों को एक साथ आने के लिए एक नामिक का कार्य किया और इस प्रकार देश की आधारभूत एकता को प्रदर्शित किया। इसीलिए आरंभ से ही भारतीय भाषा संस्थान को भाषा विश्लेषण, भाषा शिक्षाशास्त्र, भाषा तकनीकी और भाषा प्रयोग के क्षेत्रों में अनुसंधान का दायित्व दिया गया ताकि समस्याओं का समाधान हो और राष्ट्रीय अखंडता बढ़े।

भाषा नीति पर सरकार के 18 जनवरी, 1968 के जिस प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत किया गया उसमें देश के शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक विकास पर बल दिया गया था और उसमें राज्य सरकारों के सहयोग से केंद्र सरकार द्वारा त्रिभाषा-सूत्र के कार्यान्वयन हेतु आवश्यक पहल का भी संकल्प व्यक्त किया गया था। इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि देश के हिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी और अंग्रेजी के अतिरिक्त एक और भारतीय भाषा (वरीयतः कोई दक्षिण भारतीय भाषा) का समायोजन किया जाय और अहिंदी भाषी क्षेत्रों में क्षेत्रीय भाषा के साथ हिंदी को जोड़ा जाय-जैसा कि इस सूत्र में सरकार द्वारा परिकल्पित किया गया था। भारतीय भाषिक परिदृश्य की विविधता और भारतीय भाषाओं में तथा इनके बारे में ज्ञान परंपरा को प्रोत्साहित करने हेतु भारतीय भाषा संस्थान के तहत क्षेत्रीय भाषा केंद्रों की स्थापना करना आत्यंत आवश्यक था अतः योजना आयोग और वित्त मंत्रालय की स्वीकृति से उपर्युक्त उद्देश्य हेतु अलग कोश बनाया गया।

त्रिभाषा-सूत्र के कार्यान्वयन के दौरान आई बाधाओं से भी क्षेत्रीय भाषा केंद्रों की स्थापना को बल मिला। 9 जनवरी, 1969 को तत्कालीन शिक्षा मंत्री डॉ. त्रिगुण सेन की अध्यक्षता में हुई बैठक में दक्षिण भारतीय राज्यों में हिंदी शिक्षण हेतु सहायता और हिंदी भाषी राज्यों में आधुनिक भारतीय भाषाओं के शिक्षण के लिए उचित सहायता के अभाव का मुद्दा उठाया गया। इस बैठक के परिणामस्वरूप एक अध्ययन समूह का गठन किया गया जिसके द्वारा एक ऐसे सुगठित कार्यक्रम के आरंभ का सुझाव दिया गया जिसके अंतर्गत देश के हिंदी भाषी क्षेत्रों के लोगों के लिए दक्षिण भारत की किसी भाषा का अध्ययन सुगम हो सके। दूसरी तरफ यह भी निर्णय लिया गया कि क्षेत्रीय भाषा केंद्रों की स्थापना से हिंदी क्षेत्र के शिक्षकों को आधुनिक भारतीय भाषा पढ़ाने की समस्या का समाधान हो सकता है। इस प्रकार केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी प्रयास के रूप में क्षेत्रीय भाषा केंद्र अस्तित्व में आए जिसका उद्देश्य देश में बहुभाषिकता को प्रोत्साहित एवं प्रचारित करना था।

आरंभ में भारतीय भाषा संस्थान द्वारा वर्ष 1970 में 4 क्षेत्रीय भाषा केंद्रों की स्थापना भुवनेश्वर, मैसूर, पटियाला और पुणे में की गई जिसका लक्ष्य त्रिभाषा सूत्र को क्रियान्वित करना और इस प्रकार राष्ट्रीय अखंडता और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना था। इन केंद्रों द्वारा द्वितीय भाषा शिक्षण की शुरुआत की गई जो अपने आप में एक पहली चीज़ थी। तत्पश्चात तीन अन्य केंद्रों की स्थापना की गई जिसमें से सोलन और लखनऊ के केंद्र उर्दू के लिए थे और गुवाहटी का केंद्र उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की भाषाओं के लिए था।

आरंभ में इन क्षेत्रीय भाषा केंद्रों द्वारा सेवारत शिक्षकों के लिए 10 माह के भाषा प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए गये। बाद के वर्षों में इस कार्यक्रम के तहत उन भावी शिक्षकों, शोध छात्रों और आम लोगों के लिए भी प्रशिक्षण उपलब्ध कराया गया जो भारतीय भाषाओं में अपनी आजीविका के विकास में रुचि रखते थे। यह एक नवाचारपरक कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य इस देश के नागरिकों के बीच बहुभाषावाद को बढ़ावा देना और इस प्रकार राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समरसता को बढ़ाना है।

# केंद्र भाषा स्थान
1 दक्षिण क्षेत्रीय भाषा केंद्र, मैसूरु कन्नड़ 22
मलयालम 22
तमिल 22
तेलुगु 22
2 पूर्वी क्षेत्रीय भाषा केंद्र, भुवनेश्वर बंगाली 22
मैथिली 22
ओड़िया 22
संथाली 22
3 उत्तर क्षेत्रीय भाषा केंद्र, पटियाला डोगरी 22
कश्मीरी 22
पंजाबी 22
उर्दू 22
4 पश्चिम क्षेत्रीय भाषा केंद्र, पुणे गुजराती 22
कोंकणी 22
मराठी 22
सिंधी 22
5 उर्दू शिक्षण एवं अनुसंधान केंद्र, सोलन उर्दू 22
6 उर्दू शिक्षण एवं अनुसंधान केंद्र, लखनऊ उर्दू 22
7 उत्तर-पूर्वी क्षेत्रीय भाषा केंद्र, गुवाहाटी असमिया 22
बोडो 22
मणिपुरी 22
नेपाली 22
कुल 506

इन केंद्रों के अस्तित्व के विगत पांच दशकों के दौरान, इनके द्वारा देश में द्वितीय भाषा शिक्षण का अनवरत विकास किया जा रहा है। शिक्षण के अतिरिक्त इन केंद्रों को यह कार्यभार दिया गया कि वे शिक्षण को सरल बनाने हेतु विश्व स्तरीय सामग्री का निर्माण करें और भाषा प्रयोगशाला सामग्री के द्वारा विभिन्न भाषाओं में समय के अवयव को न्यून बनाएँ।

इसके अतिरिक्त, इन केंद्रों द्वारा कार्यशालाओं का आयोजन करके द्वितीय भाषा के रूप में भारतीय भाषाओं के शिक्षण एवं अधिगम हेतु उपयुक्त निर्देशनात्मक सामग्री का निर्माण भी किया जाता है जो विभिन्न स्तरों और समाज के विभिन्न वर्गों के लिए होते हैं। ये केंद्र विद्वानों को भाषा शिक्षा एवं अधिगम पर अनुसंधान हेतु प्रोत्साहित करने के लिए कार्यक्रमों के आयोजन के लिए भी समर्पित हैं।

मुख्य उद्देश्य

क्षेत्रीय भाषा केंद्र योजना का मुख्य उद्देश्य भारत के सभी राज्यों को त्रिभाषा सूत्र के कार्यान्वयन के लिए समान रूप से प्रोत्साहित करना और

  1. हिंदी भाषी राज्यों को अपने शिक्षकों को किसी हिंदीतर भाषा में प्रशिक्षित करने हेतु सहायता प्रदान करना तथा,

  2. अहिंदी भाषी राज्यों को अपने कुछ शिक्षकों को हिंदी एवं उनके राज्य की भाषा के अतिरिक्त किसी भारतीय भाषा में प्रशिक्षित करने में मदद देना है।

प्रमुख कार्य

क्षेत्रीय भाषा कार्यालयों के प्रमुख कार्यों में निम्न बिंदु सम्मिलित हैं:

  1. आधुनिक पद्धतियों के माध्यम से सेवारत माध्यमिक शिक्षकों (विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा प्रतुनियुक्त) हेतु भारतीय भाषाओं में (उनकी मातृभाषाओं के अतिरिक्त) गहन पाठ्यक्रम, जिसमें भाषा प्रयोगशाला के उपयोग से त्रिस्तरीय अर्थात प्रारंभिक, इंटरमीडिएट और एडवांस्ड पाठ्यक्रम (पहले चरण में बोलने और समझने, बाद के चरणों में पढ़ने, लिखनें और बोलने पर विशेष ध्यान देना) प्रदान करना।

  2. इन शिक्षकों को भाषाई अभिविन्यास प्रक्रिया द्वारा द्वितीय भाषा शिक्षण में प्रशिक्षित करना; शिक्षण सामग्री तैयार करने और पाठ्यक्रम पूर्ण होने के उपरांत उन्हें अपने संस्थान में इसके उपयोग में सक्षम बनाना।

  3. समाज के विभिन्न वर्गों हेतु विभिन्न स्तरों पर द्वितीय भाषा के रूप में भारतीय भाषाओं के शिक्षण एवं अधिगम के लिए अनुदेशात्मक शिक्षण सामग्री तैयार करना।

  4. शिक्षण में पूर्व-शिक्षक प्रशिक्षुओं के प्रदर्शन का मूल्यांकन और पुनश्चर्या पाठ्यक्रम संचालित करना।

  5. राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को द्वितीय भाषा पाठ्यचर्या, पाठ्यपुस्तकें तैयार करने और सामग्री निर्माण और शिक्षक प्रशिक्षण में मदद करना।

  6. भाषा शिक्षण संबंधी सिद्धांतों और पद्धतियों के साथ-साथ अध्येताओं के प्रदर्शन से संबंधित अनुसंधान करना।

  7. भारतीय अध्ययन कार्यक्रम के अंतर्गत भारतीयों और विदेशी नागरिकों हेतु अल्पकालिक आवश्यकता आधारित पाठ्यक्रम का आयोजन करना।

  8. भाषायी शिक्षा से संबंधित विषयों पर राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर के सेमिनार एवं सम्मेलन आयोजित करना।

भविष्य की योजना

विभिन्न विभागों, शैक्षणिक निकायों, संस्थानों ने अपने भाषा कार्यक्रमों में द्वितीय भाषा के साथ-साथ मातृभाषा शिक्षण में भारतीय भाषा संस्थान और क्षेत्रीय भाषा केंद्रों के विस्तार और परामर्श कार्य में अधिक निवेश का अनुरोध किया है। संस्थान के सभी क्षेत्रीय भाषा केंद्रों में पूर्ण विकसित परामर्श अनुभाग स्थापित करने की योजना है;

  1. शिक्षक प्रशिक्षुओं के विद्यालय लौटने के उपरांत उनके द्वारा किए गए शिक्षण कार्यों का पर्यवेक्षण और मूल्यांकन।

  2. इन विद्यालयों का दौरा करें और वहीं पर शिक्षकों को शैक्षणिक सुझाव दें।

  3. विद्यालयी पाठ्यचर्या के अनुरूप कक्षा शिक्षण और सामग्री निर्माण में आने वाली समस्याओं का समाधान करें।

  4. राज्यों द्वारा अनुरोध किए जाने पर भाषा मूल्यांकन, परीक्षण, पाठ्यचर्या निर्माण, पाठ्यपुस्तक लेखन और चयन पर राज्यों को सलाह देना।

  5. पूर्व-शिक्षक प्रशिक्षुओं हेतु पुनश्चर्या पाठ्यक्रमों का आयोजन और संचालन करना और आवश्यकतानुरूप सामग्री निर्माण के मूल्यांकन हेतु कार्यशालाओं का आयोजन और संचालन करना।

  6. पूर्व-शिक्षक प्रशिक्षुओं द्वारा द्वितीय/तृतीय भाषा के रूप में पढ़ रहे स्कूली बच्चों के लिए भाषा शिविर आयोजित करना।

  7. राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से भाषा संबंधी मुद्दों पर जानकारी एकत्र करना, शिक्षा और जनजातीय विभागों के संपर्क में रहकर आवश्यकतानुसार अन्य कार्रवाई करना।

  8. केंद्रों पर क्षेत्रीय भाषाओं में ऑनलाइन भाषा शिक्षण के लिए एम.ओ.ओ.सी.एस. पाठ्यक्रम विकसित करने की योजना है।

  9. इस कार्यक्रम को अन्य भारतीय भाषाओं तक भी विस्तारित करना है।